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क्या बच्चो को संभालना सिर्फ माँ का फ़र्ज़ है?

क्या बच्चो को संभालना सिर्फ माँ का फ़र्ज़ है?

मेघा, एक कप चाय देना ज़रा। हां, 10 मिनट में लाती हूँ, शुभम को होमवर्क करा रही हूँ,  मेघा ने बैडरूम से आवाज़ लगाते हुए कहा। यहाँ मेरा सर फटा जा रहा है और तुम बोल रही हो दस मिनट में लाती हूँ?, राजेश अपना सर पकड़ कर बोले। ठीक है, अभी लायी, मेघा शुभम की किताबे बंद करती हुई बोली। पापा, पापा चलो पार्क चलो ना, शुभम और नेहा ने बड़ी प्यार से बोला।  ‘बेटा, मै बहुत थका हुआ हूँ और अभी मेरा सर दर्द भी हो रहा है, तुम एक काम करो मम्मी के साथ चले जाओ।  वैसे भी तुम्हारी मम्मी तो सारा दिन घर पर ही रहती है और घर पर आराम करती रहती है।  घर पर काम ही कितने होते है। बस सुबह  नाश्ता बनाओ, दोपहर का खाना बनाओ और हो गया।’, राजेश बोला|

शुभम अपने पापा का ये जवाब सुन कर सहमत नहीं था क्यूंकि वह अब इतना छोटा भी ना था, 6 साल का जो हो चुका था शुभम और वही नेहा, शुभम से 2 साल बड़ी थी। बच्चो ने सोचा, आज हम अपना होमवर्क पापा के साथ बैठकर  करेंगे। खाना खाने के बाद पापा टीवी देख रहे थे और माँ रसोई समेटने में लगी थी। पापा आपको पता है, मुझे आज बहुत सारा होमवर्क मिला है। आप मेरी हेल्प करोगे?, शुभम बोला| बेटा, आपको तो होमवर्क आपकी मम्मा कराती है ना।,राजेश झट से बोला|

मेघा तुम्हे पता है ना की मै ऑफिस से थका हुआ आता हूँ, तब भी तुम बच्चो को मेरे पास भेज देती हो, होमवर्क करवाने के लिए।,राजेश जोर से चिल्ला पड़ा। नहीं, मैंने नहीं भेजा बच्चो को आपके पास, वो खुद आये है, चलो, बच्चो इधर आओ, पापा को परेशान  मत करो।,मेघा ने बच्चो पर  चिल्लाते हुए कह।

जाओ बेटा, मम्मी बुला रही है तुम्हे, राजेश बोले| और फिर आया संडे का दिन, पापा आज तो आपकी छुट्टी है, चलो ना  पार्क चलते है। नहीं बेटा, आज तो हम घर पर मूवी देखेंगे, राजेश बोले | आज कुछ अच्छा  बनादो यार, राजेश ने फरमाईश करते हुए कहा। हां, मम्मा, बच्चे भी बोले। मेघा ने भी पॉपकॉर्न , नूडल्स, सैंडविच बनाकर सबकी फरमाईश पूरी करदी।  इतने में मूवी ख़त्म हो गयी। माँ, आपने तो मूवी देखी नहीं। बेटा, काम से फुर्सत मिलती न मुझे तो जरूर देखती मूवी।, मेघा ने धीरे से कहा।

मेघा का फ़ोन बजा, मम्मी मासी का फोन है। हाँ, बेटा बाहर वाले कमरे में ले आओ। नेहा झट से फ़ोन ले आयी। हेलो, अरे प्रिया कैसी है सब बढ़िया न।, मेघा बोली| हाँ दीदी सब बढ़िया आप बताओ, आप कैसी हो? बस बढ़िया | ‘और आज तो संडे है क्या कर  रही हो?? खाना, वाना हो गया ?’, प्रिया बोली|

हां, हो गया, अरे काहे का संडे? संडे जिसे  कहने को तो छुट्टी का दिन कहते है  लेकिन ये छुट्टी औरतो के  नसीब में नहीं होती । क्यूंकि चाहे आप वर्किंग हो या हाउसवाइफ घर के काम और किचन से छुट्टी मिलना बहुत मुश्किल काम है।, मेघा ने कहा। हां, ये तो है मेरा भी पूरा दिन घर की सफाइयों में  और बाकी सबकी फरमाइशें पूरी करने में निकल गया।, प्रिया बोली। चल, मै बाद में बात करती हूँ, बच्चो को होमवर्क करवाना है, मेघा बोली | ठीक है दी, बाय।

पापा, आप भी हमे मम्मा जैसे हमे होमवर्क क्यों नहीं कराते? हमे स्कूल के लिए तैयार नहीं करते? बच्चे राजेश से सवाल करने लगते है। ‘बेटा, ये सब तो औरतो के काम है’, राजेश फिर से वही उत्तर दिया।

सोमवार का दिन आया, और शाम को राजेश के दफ्तर से आने  का वक़्त हुआ और शुभम ने भी अपने पापा की तरह आर्डर देना शुरू कर दिया , मेरा तौलिया कहा रखा है , रिमोट तो पास कर दो जरा, अरे चश्मा उठा दो। दीदी, मेरे लिए पानी लाना जरा। तुम मुझे क्यों बोल रहे हो, पानी लाने के लिए, तुम भी तो ला सकते हो।, नेहा ने गुस्से से शुभम को कहा। अरे, क्यूंकि पापा ने कहा है की ये सब औरतो के काम है, मतलब सब लड़किया ही ये काम करती है। अब तो मै आराम से खेलूंगा और दीदी को आर्डर दूंगा।  जैसे पापा मम्मी को देते है।

मेघा सब सुन रही थी और उसे शुभम पर बहुत गुस्सा भी आ रहा था लेकिन वो अपने पति की प्रतिक्रिया का इंतज़ार कर रही थी। उसे लगा जो काम वो नहीं कर पायी है, शायद अब बच्चे कर दे। बेटा, तुम ये क्या कर रहे हो ? तुम अपना काम खुद क्यों नहीं करते , और ये आर्डर देना कहा से सीखे?, राजेश शुभम  पर भड़कते हुए बोले।

 मेघा, तुम बच्चो पर ध्यान क्यों नहीं देती हो? सारा दिन टीवी देख कर बिगड़ गया है ये? और तुम बैठ जाओ एक जगह, खबरदार उसको कोई सामान उठा कर दिया तो?, राजेश ने नेहा को फटकारते हुए कहा। पापा, मै टीवी से नहीं, बल्कि आपसे सीखा हूँ, आर्डर देना।, शुभम पापा की और देखते हुए बोला| क्या मुझसे?

आप ने ही तो कहा था की ये काम औरतो के है? शुभम की बाते सुनकर राजेश भोचक्का रह गया? अब जाकर राजेश की आँखों से पर्दा हठा और उसे समझ में आया की जो बर्ताव उसने अपनी पत्नी के साथ किया बच्चे भी उसे समझते है, और इस फर्क को वो अपने अंदर  भी लागू करते है।

हमे बेटा और बेटी में फ़र्क़ नहीं रखना चाहिए। उसने मेघा को आवाज़ लगाई और उससे क्षमा मांगी। माना की मै सारा दिन ऑफिस के कामो में व्यस्त होता हूँ , पर इसका मतलब ये नहीं की तुम सारा दिन पलंग तोड़ती हो। अगर तुम बच्चो को ना संभालती तो मै चैन से ऑफिस नहीं जा पाता। मुझे माफ़ करदो, अब मै कभी आर्डर नहीं दूंगा। तौलिया, रिमोट, कपड़े खुद ले लूंगा। घर सभालना, बच्चो की देख रेख करना सिर्फ माँ का ही नहीं बल्कि पिता की भी जिम्मेदारी होती है।

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